From Tea to Pav Bhaji: The Lasting Imprint of the British Era on Our Plate
भारत की ख़ानपान संस्कृति जितनी विविध है, उतना ही समृद्ध और परिवर्तनशील भी है। हमारी रोजमर्रा की थाली में कई ऐसे स्वाद और व्यंजन हैं जिनका मूल ब्रिटिश दौर में पड़ा था — अब वे इतने आम हो गए हैं कि शायद हम उनकी विदेशी उत्पत्ति भूल चुके हैं। आइए जानें 7 खाद्य सामग्री या व्यंजन जो ब्रिटिश काल के दौरान भारत में आये और आज हमारी जीवनशैली का हिस्सा बन गए हैं।
1. ब्रेड और बेकरी संस्कृति
भारत में तरह-तरह की रोटियाँ, पराठे आदि सदियों से थे, लेकिन ब्रेड का स्लाइस किया हुआ, सॉफ़्ट ब्रेड लूज़ और बन्स तथा बेकरी चलाने की व्यवस्थित संस्कृति ब्रिटिश समय में आयी।
आज ‘पाव भाजी’, ‘वड़ा पाव’, ‘मास्का पाव’ जैसे स्ट्रीट फूड बिना ब्रेड-पाव के अधूरे लगते हैं। बड़े शहरों में बेकरीज़ में हर तरह का ब्रेड मिलता है – डिनर रोल, सैंडविच ब्रेड, ब्रेड पकोड़े आदि।
रेसिपी आइडिया: घर पर बटर पाव में हरी चटनी लगाकर झटपट सैंडविच बनाइए।
2. चाय-प्रेम (Tea Obsession)
चाय (चाय-पत्ती) असम सहित कुछ स्थानों में जंगली रूप में मिलती थी, लेकिन चाय की खेती, उत्पादन और “चाय-पान” की आदत ब्रिटिशों ने ही लोकप्रिय बनाई।
दूध और चीनी के साथ मीठी-मसालेदार चाय अब भारत की सुबह और शाम दोनों का हिस्सा है — सड़क-ढाबों से लेकर प्रतिष्ठित चायवालों तक।
स्थानीय उदाहरण: पुणे की वैद्य काकांची टपरी या बनारस की कुल्हड़ वाली चाय।
3. बिस्कुट और ‘डंक’ करने की आदत
ब्रिटिश से आयातित बटर-शॉर्टब्रेड और अन्य बेक्ड कूकीज़ धीरे-धीरे भारत में स्थानीय स्वादों के साथ मिश्रित हुए। ग्लूकोज़ बिस्कुट, मैरी बिस्कुट और बड़े ब्रांड-बेस बिस्कुट-उत्पाद भारत में बहुत लोकप्रिय हो गए।
दिन के एक हिस्से में चाय के साथ बिस्कुट डुबो कर खाना आज भी एक आम प्रथा है। ये झटपट, सस्ता और सुविधा जनक नाश्ता बन गया है।
रेसिपी आइडिया: बिस्कुट को क्रश करके झटपट बिस्कुट केक बनाइए।
4. आलू
आलू मूलतः भारत का नहीं है पर यूरोपीय व्यापारियों तथा ब्रिटिश कृषि नीतियों के कारण यह देशभर में पहुंचा और खेती में बढ़ावा मिला।
अब आलू भारत की थाली का एक अभिन्न हिस्सा है — समोसा, परांठा, सब्जियाँ, चाट, फ्राइड आलू, आलू-गोबी आदि व्यंजन बिना आलू के अधूरे माने जाते हैं।
स्थानीय उदाहरण: दिल्ली का आलू चाट, कोलकाता का आलू दम, बनारस का आलू-टमाटर।
5. फूलगोभी (Cauliflower)
फूलगोभी भी ब्रिटिश समय में कृषि विभागों द्वारा प्रचार-प्रसार के साथ आम घरेलू सब्जी बन गयी।
उसके स्वाद को भारतीय मसालों से मिलाकर, यह ‘आलू-गोबी’, ‘गोबी पराठा’, ‘गोबी मंचूरियन’ जैसे अनेक स्वरूपों में सामान्य हो गयी।
रेसिपी आइडिया: गोभी को हल्दी और नमक लगाकर हल्का सा भूनें और दही के साथ परोसें।
6. कस्टर्ड और पुडिंग (Custard & Pudding)
ब्रिटिश मिठाइयों में से कस्टर्ड-पाउडर और दूध-आधारित पुडिंग का परिचय भारत में शाम-घर की मिठाई के रूप में हुआ।
त्योहारों, जन्मदिनों और पारिवारिक समारोहों में “फ्रूट कस्टर्ड” जैसे मैठे व्यंजन आज भी बहुत लोकप्रिय हैं। भारतीय स्वादानुसार इनका स्वाद मीठा, बहु-गुणी और सरल बनाया जाता है।
स्थानीय उदाहरण: दक्षिण भारत में घर-घर में कस्टर्ड पाउडर का डेज़र्ट जन्मदिन पर जरूर बनता है।
7. कटलेट्स और चॉप्स (Cutlets & Chops)
ब्रेडयुक्त, तली-भुनी पैटी जैसा व्यंजन ब्रिटिशों ने भारत में लाया, जिसके बाद भारतीय रसोइयों ने इसे अपने मसालों, सामग्री और तरीके से स्थानीय रूप दिया।
यह रेलवे कैंटीन, स्ट्रीट वेंडर्स और घरों में शाम-नाश्ते का पारंपरिक व्यंजन बन गया — शाकाहारी कटलेट से लेकर मांसाहारी-मछलियों के चॉप्स तक।
रेसिपी आइडिया: उबले आलू और सब्ज़ियों से घर पर हेल्दी वेज कटलेट बनाइए।
क्यों बनी ये चीजें जन-जन की पसंद?
- स्वाद में अनुकूलन: भारतीय मसाले, तड़के एवं पाक कला ने इन ब्रिटिश आयातों को अपने स्वाद अनुरूप ढाल दिया।
- सुलभता और उपयोगिता: सादी चीज़ें और जल्दी बनने वाली चीज़ें — आलू, ब्रेड, बिस्कुट — दैनिक जीवन में काम आने वाली बनीं।
- कल्चरल मिश्रण: भोजन सिर्फ पोषण नहीं, बल्कि पहचान, रिवाज़ और सामूहिकता का हिस्सा है। ब्रिटिश व्यंजन जब भारतीय घरों में आये तो वे धीरे-धीरे हमारी संस्कृति से गुण मिलाते हुए घुलते गए।
- आर्थिक पहलू: कुछ खाद्य सामग्री सस्ती पड़ीं, आसानी से उगायी गयीं या आयात हुईं तथा पैकेज हो सकीं — इससे उनका प्रसार आसान हुआ।
निष्कर्ष
ब्रिटिश शासन हमारे इतिहास का अहम अध्याय रहा है। उसने सिर्फ़ रेल मार्ग, कानून और प्रशासनिक ढाँचा ही नहीं दिया, बल्कि हमारी थाली पर भी गहरा असर छोड़ा। आज हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जो कई खाद्य पदार्थ बेहद सामान्य लगते हैं, वे दरअसल विदेशी मूल के हैं। लेकिन समय के साथ वे इस कदर भारतीयता में रच-बस गए हैं कि अब हमारी पहचान का हिस्सा बन चुके हैं। यह दिलचस्प है कि कैसे हम अनजाने में विदेशी प्रभावों को अपनाते हैं और वे धीरे-धीरे अपना रूप बदलकर “पूरी तरह भारतीय” हो जाते हैं।
ब्रिटिश राज ने भले ही कई कड़वे अनुभव दिए हों, लेकिन इसके साथ कुछ स्थायी स्वाद भी हमें सौग़ात में मिले। ब्रेड, चाय, बिस्कुट, आलू, फूलगोभी, कस्टर्ड और कटलेट — ये अब सिर्फ़ खाद्य पदार्थ नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता और मेल-जोल की प्रतीक हैं।
आज जब आप सुबह की चाय-बिस्कुट का आनंद लेते हैं या शाम को पाव भाजी का स्वाद चखते हैं, तो याद रखिए — इन लज़ीज़ पकवानों में कहीं न कहीं ब्रिटिश दौर की छाप आज भी मौजूद है।
