December 30, 2025
Allahabad High Court: Married person cannot enter live-in relationship without divorce

Allahabad High Court: Married person cannot enter live-in relationship without divorce

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कोर्ट ने कहा – व्यक्तिगत स्वतंत्रता पूर्ण नहीं, कानूनी जीवनसाथी के अधिकार सर्वोपरि

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया है कि कोई भी विवाहित व्यक्ति बिना तलाक लिए किसी अन्य व्यक्ति के साथ लिव-इन संबंध में नहीं रह सकता। इस टिप्पणी के साथ कोर्ट ने उस दंपति की याचिका खारिज कर दी, जिसमें वे लिव-इन में रहते हुए सुरक्षा की मांग कर रहे थे।

जस्टिस विवेक कुमार सिंह ने यह फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि भले ही वयस्कों को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अपनी जीवनशैली चुनने का अधिकार है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण या असीमित नहीं है। इसे इस तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता जिससे किसी वैध जीवनसाथी के कानूनी अधिकार प्रभावित हों।

याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि वे दोनों वयस्क हैं और पति-पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं, लेकिन परिवार वालों से जान का खतरा है। वहीं राज्य की ओर से कहा गया कि महिला याचिकाकर्ता पहले से विवाहिता है और उसने अभी अपने पति से तलाक नहीं लिया है।

अपने निर्णय में कोर्ट ने कहा कि दो वयस्कों की स्वतंत्र इच्छा में कोई व्यक्ति — यहां तक कि माता-पिता भी — हस्तक्षेप नहीं कर सकते। हालांकि कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता वहीं समाप्त होती है जहाँ किसी दूसरे के कानूनी अधिकार शुरू होते हैं।

कोर्ट ने कहा कि एक वैध जीवनसाथी को अपने साथी के “साथ” और संगति का सांवैधानिक अधिकार है, जिसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता के नाम पर छीना नहीं जा सकता।

फैसले में यह भी कहा गया कि यदि कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा है और उसका जीवनसाथी जीवित है, तो वह कानूनी रूप से किसी तीसरे व्यक्ति के साथ लिव-इन में नहीं रह सकता, जब तक कि वह न्यायालय से विधिवत तलाक न ले ले।

याचिका पर सुरक्षा देने से इनकार करते हुए कोर्ट ने कहा कि बिना तलाक लिए लिव-इन में रहने वाले याचिकाकर्ताओं के पक्ष में कोई आदेश, निर्देश या रिट जारी नहीं की जा सकती।

कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि इस तरह की याचिकाओं की संख्या बढ़ रही है और कई युगल तब अदालत का रुख करते हैं जब जिला पुलिस उनकी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं करती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला लिव-इन संबंधों की सामाजिक मान्यता का नहीं बल्कि संवैधानिक स्वतंत्रता और वैधानिक अधिकारों के संतुलन का है।

अंत में कोर्ट ने दोहराया कि वयस्कों को जहाँ चाहें रहने और जिसके साथ रहना चाहें, उसका अधिकार है, लेकिन यह अधिकार विवाह से जुड़े कानूनी दायित्वों से ऊपर नहीं हो सकता।

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