CBSE vs ICSE: Why Do ICSE Schools Lag Behind Despite Their Strong Reputation?
भारत में स्कूली शिक्षा की बात हो तो सबसे ज़्यादा चर्चा दो बड़े बोर्ड्स की होती है—CBSE (सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन) और ICSE (इंडियन सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन)। दोनों ही उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा के लिए पहचाने जाते हैं, लेकिन इनके बीच एक बड़ा फर्क है: CBSE के 28,000 से अधिक स्कूल पूरे देश में मौजूद हैं, जबकि ICSE स्कूलों की संख्या केवल करीब 2,500 तक सीमित है।
तो आखिर क्यों, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत पहचान रखने वाला ICSE, संख्या के मामले में CBSE से इतना पीछे है?
सरकारी मान्यता और लोकप्रियता
CBSE को सीधे केंद्र सरकार का समर्थन प्राप्त है और इसका पाठ्यक्रम राष्ट्रीय प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे JEE, NEET और UPSC से जुड़ा हुआ है। यही वजह है कि यह छात्रों और माता-पिता दोनों की पहली पसंद बन जाता है। दूसरी तरफ, ICSE एक प्राइवेट बोर्ड है, जिसे CISCE संस्था संचालित करती है। सरकारी समर्थन की कमी इसकी पहुंच को सीमित कर देती है।
लागत और इंफ्रास्ट्रक्चर
ICSE स्कूल खोलने और संचालित करने में अधिक लागत आती है। इसके लिए कड़े इंफ्रास्ट्रक्चर मानक और विस्तृत सह-पाठयक्रम गतिविधियों की ज़रूरत होती है। वहीं CBSE स्कूलों की स्थापना कम खर्चीली और आसान है, जिससे यह निजी संस्थानों और राज्य सरकारों के लिए अधिक आकर्षक विकल्प बन जाता है।
पाठ्यक्रम का अंतर
ICSE बोर्ड को इसके गहन और विस्तृत सिलेबस के लिए सराहा जाता है, जिसमें भाषाओं और प्रोजेक्ट-आधारित शिक्षा पर ज़ोर होता है। लेकिन यह छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण और अभिभावकों के लिए महंगा पड़ सकता है। दूसरी ओर, CBSE का पाठ्यक्रम अपेक्षाकृत सरल और परीक्षा-उन्मुख है, जो प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए उपयोगी माना जाता है।
पहुंच और उपलब्धता
CBSE स्कूल देश के छोटे कस्बों और ग्रामीण इलाकों तक फैले हुए हैं, जिससे यह आसानी से आम लोगों तक पहुंच बनाता है। ICSE स्कूल ज़्यादातर बड़े शहरों और मेट्रो तक सीमित रहते हैं।
वैश्विक बनाम राष्ट्रीय दृष्टिकोण
ICSE को विदेशों में उच्च शिक्षा के लिहाज़ से अधिक महत्व मिलता है। लेकिन भारत के अधिकतर छात्र देश में ही पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं, ऐसे में CBSE उनके लिए अधिक प्रैक्टिकल विकल्प साबित होता है।
निष्कर्ष
ICSE स्कूल अपनी उच्च गुणवत्ता और वैश्विक पहचान के बावजूद सीमित पहुंच, अधिक लागत और सरकारी सहयोग की कमी की वजह से संख्या में कम हैं। वहीं CBSE अपने सरकारी समर्थन, कम खर्च और व्यापक उपलब्धता के कारण भारतीय शिक्षा प्रणाली में सबसे मज़बूत स्थिति में है।
अंत में, अभिभावकों का चुनाव ज़्यादातर किफ़ायती विकल्प, पहुंच और करियर लक्ष्यों पर निर्भर करता है—और यही कारण है कि CBSE स्कूलों की संख्या ICSE से कहीं आगे है।
